Nov 5, 2025

बीते दिन

मानव मन, बीते दिनों को 

कहां भूल पाता है।

बचपन के दिन, जवानी की बातें

सब कुछ याद आता है।

बचपन का खेल अब भी उसे भाता है। 

बुढ़ापे की अवस्था, खेल नहीं पाता है।

जवानी के मित्रें को याद कर मुस्काता है

बीता हर एक लम्हा आंखों पे छा जाता है

पर अब जीवन की जिम्मेवारियों में 

खोया खोया रहता है।

नित दिन नई नई परेशानियों में

स्वयं को घिरा पाता है।

मानव मन, बीते दिनों को अद्वितीय 

कहां भूल पाता है।

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