वह पहली बार रो पड़ी,
यह जान कर कि-------
वह परायी थी।
जिस घर को अपना,
समझती आ रही थी,
वह अपना न था।
बोझ, बोझ और बोझ,
वह उस घर के लिए
केवल बोझ थी।
परवरिश में तो कभी,
कमी नहीं दिखी।
परन्तु
मुखौटों के पीछे छुपाकर रखो,
फिर भी चेहरा कह देता है
हाँ ये सच है।
सगाई, विदाई और फिर,
परायी की परायी।
तब उसने पूरे उत्साह से
एक ऐलान कर दिया,
मेरे जीवन का उद्देश्य
उच्च शिक्षा ग्रहण करना है।
और फिर वह अद्वितीय---
आकाश की ऊंचाइयों की ओर
बढ़ ली।
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