मेघा बरसे, मन तरसे
मेघा बरसे, मन तरसे,
पड़ रही ठंडी फुहार रे।
घन गरजे, बिजली चमके,
पिया नहीं पास रे।
कभी पुरवईया, कभी पछिया,
वायु लहराये साथ रे।
मन झुलसाये अंग जलाये,
विरह वेदना की आग रे।
प्रेम प्यासी घट-घट मारी,
देखूं तुम्हारी राह रे।
पत्र पढ़ कर पिया
मत अब करना देर रे।
अद्वितीय प्रीत की प्यासी,
ओ बालम आना गांव रे।
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