Jun 13, 2025

कहीं नहीं छांव रे

 कहीं नहीं छांव रे


बाग बगीचे आम पपीते 

कहीं नहीं छांव रे

मन तरसे, कब मेघा बरसे,

कब पड़े ठंडी फुहार रे

जब घन गरजे बिजली चमके

ओ बालम आना गांव रे।

कहीं नहीं छांव रे----------।

मन झुलसाये अंग जलाये

ग्रीष्म की ये शान रे

कभी पुरवईया कभी पछिया

वायु लहराये साथ रे।

कहीं नहीं छांव रे----------।

गगरी मटका कुआं सरोवर

बुझा न पाया प्यास रे

प्रेम प्यासी घट-घट मारी

बस तुम्हरी अद्वितीय आस रे

कहीं नहीं छांव रे----------।

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