कहीं नहीं छांव रे
बाग बगीचे आम पपीते
कहीं नहीं छांव रे
मन तरसे, कब मेघा बरसे,
कब पड़े ठंडी फुहार रे
जब घन गरजे बिजली चमके
ओ बालम आना गांव रे।
कहीं नहीं छांव रे----------।
मन झुलसाये अंग जलाये
ग्रीष्म की ये शान रे
कभी पुरवईया कभी पछिया
वायु लहराये साथ रे।
कहीं नहीं छांव रे----------।
गगरी मटका कुआं सरोवर
बुझा न पाया प्यास रे
प्रेम प्यासी घट-घट मारी
बस तुम्हरी अद्वितीय आस रे
कहीं नहीं छांव रे----------।
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