Jun 5, 2025

मन के आंगन में

 मन के आंगन में


प्रेम प्यासी, मत मारी,

क्यों तुम संग प्रेम लगायी।

कटे न दिन, बुझे न प्यास,

रात रात भर नींद न आयी।।

काली काली आंखें कजरारी,

उसमें छवि तुम्हारी छाई।

कोमल फूल से इन होठों ने,

प्रेम गीत तुम्हारी गाई।।

हृदय को तुमने बांधाण्ण्ण्ण्

हर धड़कन यह सुना रही।

भूख प्यास सब भूल कर,

प्रेम गीत बस गुनगुना रही।।

बसी सुगंध मेरी सांसों में,

अपनापन तुम्हारी आशाओं में।

आओ जाओ मन के आंगन में,

बांध लो अद्वितीय बंधन में।।

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