आशा
मन की बातों को,
मन में ही सहा।
अपनी चिंता,
किसी से नहीं कहा।
मन के अंदर ही अंदर,
घुटता रहा, गुमसुम रहा।
निराशा के सागर में गोते,
खाता रहा, उतराता रहा।
इससे क्या मिला--------?
घोर निराशा और हताशा।
अब जरा सा अपने को समझाया,
अपनी चिंता परिजन को बतलाया।
उनसे मिली सीख को अपनाया,
जीवन लगा जैसे थोड़ा मुस्कुराया।
आशावादी मित्रें को बनाया धूरी,
निराशावादियों से कर ली दूरी।
निराशा को मत कहो मजबूरी,
आशा ही जीवन है अद्वितीय जरूरी।
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