May 31, 2025

अपनापन का बोध

 अपनापन का बोध


बहता है हृदय में, 

अविरल प्रेम की धारा।

कैसे भुला सकता वह, 

स्नेह और करुणा सारा।

स्वार्थ से भरे इस जीवन में, 

हर रिश्ता हो रहा बेमानी।

आपकी छत्र-छाया में 

पाया प्रेम भरा निशानी।।

धन्य हैं आप जो हमें 

अपनापन का बोध कराते हैं।

मन मष्तिष्क में संचरण, 

उत्साह भर भर कर लाते हैं।।

निराशा को विश्वास में बदलना 

आपने सीखा दिया।

अद्वितीय साहस से जीवन जीना

यह करतब भी दिखा दिया।।

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