बंधन
तेरे घर आंगन में,
खुशियों का सामा्रज्य रहे।
तेरे मन में सदा,
आनन्द का राज रहे।
तू कलियों सी मुस्काती रहे,
फूलो सी खिलखिलाती रहे।
महकता रहे तेरा बाग बगीचा,
ऐसा मैंने हर पल सोचा।
जितना सोचो उससे ज्यादा,
यह प्रेम होता ही है ऐसा।
सपनों में जो नहीं सोचा,
वह अगर हो जाये।
चलते चलते राह अगर,
मन-मीत का बदल जाये।
अद्वितीय प्रेम का यह बंधन,
तब भी कहां टूट पाता है।
जिसे देखो वही फिर से,
प्रेम गीत दुहराता है।।
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