नजर तो मिला लेते
घर के चौखट तक आकर
क्यों लौट गये,
किवाड़ तो खुला था
जरा धकेल लेते तुम।
बार बार घर के झरोेखे से
झांकते हुए तुझे देखा,
एक बार ठीक से
नजर तो मिला लेते तुम।
तब बात बन जाती
इतना ही कहना है,
एक बार सामने आ जाओ
आखिर क्यों नहीं समझते तुम।
चिंगारियां भड़कती रहेगी
केवल दोनों तरफ इस तरह,
मेरे मन के बंधन में अद्वितीय
क्यों नहीं बंध जाते तुम।
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