अपनों के संग
गांव नहीं नगर बस रहे,
नगर नहीं महानगर हंस रहे।
आदमी यहां से वहां तक,
भटक रहे----परिवार छूट रहे।।
प्रेम-भाव सब लुट गये,
स्नेह-आनंद अब घुट गये।
आदमी अपने को बदल लिया,
सारे रिश्ते ही मानो टूट गये।।
धन की अधिक चाह ने,
दुनिया बदल डाली सारी।
गांव की मिट्टी से क्या,
भूख नहीं मिटती थी हमारी।।
ये नगर अद्वितीय बसते हैं
नगर में जाकर नौकर बनते हैं।
गांव उन्नत करता आदमी
सभी अपनों के संग रहता आदमी।।
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