मैं फूल हूं
कली हूँ मैं, फूल हूं, खुशबू लुटाती हूं,
तोड़ कर बिखराते हो, फिर भी मुस्कुराती हूं।
नहीं मैं कंटक हूं, जो चुभ कर लहू बहा देता,
मुझे पाकर हर कोई खुशी से खिलखिला देता।
प्रेम का मैं प्रतीक बनी अपनी प्रेम लता से,
हर प्रेमी को भाऊं अपनी कोमलता से।
मैं फर फर करती बाग में, मेरे भी कुछ अरमान,
मेरे पंखुड़ियों को मत तोड़ो, बसती नन्हीं जान।
मैं सृजन करती, सुगंधित करती, पूरा संसार,
हवा के संग मैं बहूं, मैं सुगंधित प्रेमाहार।
जीवन से भी बढ़कर प्यारा, अपना मुस्कान,
अपने फूल होने पर, है अद्वितीय मान।
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