Apr 22, 2025

 वह चेहरा

बंद रखे कोमल होंठ,
चंचल नयन होए वाचाल।
मंद मंद मुस्कुराता मुखड़ा,
शर्म से वो होए लाल।।

कंचन काया पर लिपटी,
जगमग सा लंहगा कुरता।
केशों को कभी संवारे,
कभी संवारे अपना दुप्पटा।।

पैरों की अंगुलियाें से
धरती पर उकेरे रूप।
लाज आती है इतनी
मानो कड़कड़ाती धूप।। 

ज्योंहि हटा सामने से 
नजरें उठी, लड़ी हमसे।
देख कर बेकाबू हुआ इतना 
नहीं उतरा वह चेहरा अब तक,  
अद्वितीय दिल से।।

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