तुम्हारा प्यार
प्रेम की आभा से, छाई अरुणाई,
चंचल नयनों में चंचल करुणाई,
पलकें भारी भारी जबकि है तरुणाई,
ये तुम्हारा प्यार अंग अंग में है छाई।
यह पता नहीं चला जीवन में,
बन गए कब तुम मेरे आराध्य,
मेरी पूजा अर्चना व प्रेम स्वार्थ,
पूरा हुआ इस जीवन का साध्य।
मेरी कंचन सी यह रूप-कांति
पाकर अद्वितीय स्नेह हर्षित होता।
मेरी मृग नयनों की चंचलता से,
मुख मंडल तुम्हारा हर्षित होता।
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