होलिका की चाल
फाल्गुन की हवा चली, खिलने लगे पलाश,
मन में उठ रही अंगड़ाइयां, रूक गया मधुमास।
नव फूलों और पत्तों से लदे, आम, नीम, बबूल
धरती ने मानों ओढ़ ली सतरंगी चुनरी दुकूल।
हर पक्षी डाल डाल बदले अपना आकार
कोयल अपनी कूक से करे संगीत साकार।
हवा में खिलखिला रहे, कटहल-कदम्ब-कचनार
फागुन का रंग चढ़ा, हर बच्चे बुजुर्ग नर-नार।
रंग रंगीला हो रहा, ये टेसू के फूल
आज मनायेंगे होलिका दहन, कोई न जाए भूल।
भगवन समझ गये थे होलिका की चाल
तभी तो प्रींलाद का बांका भी न हुआ बाल।
होलिका दहन बताता, आस्था की होती है जीत
खुशी-खुशी हम मनायें होली की अद्वितीय रित।
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