Jul 21, 2018

Motivational story आनन्द प्राप्ति के लिए


                        आनन्द प्राप्ति के लिए

जीवन का अन्तिम लक्ष्य आनन्द की प्राप्ति है। 
मनुष्य के सारे पुरुषार्थ आनन्द प्राप्ति के लिए हैं। 
अर्थात लक्ष्य एक ही है, हर जीव आनन्द चाहता है।
आनन्द की दो स्थिति है, प्रथम जिसे सुख कहते हैं, 
दूसरा जो मन से जुड़ा है। 
शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति से सुख मिलता है। 
मन की इच्छाओं की पूर्ति से आनन्द मिलता है।
आनन्द की तृप्ति के साथ मानव में मानवीय गुणों का विकास होता है।
 केवल शारीरिक इन्द्रियों की तृप्ति तो पशु भी कर लेते हैं। 
परन्तु मनुष्य में आनन्द की प्राप्ति के साथ उसके आत्मिक गुणों का विकास होता है। 
उसमें साहस, धैर्य, जीवट, क्षमा आदि अनेक दैवीय गुणों का विकास होता है 
इसलिए आनन्द प्राप्ति से ही मनुष्य मनुष्य बनता है।
भारत की प्राचीन संस्कृति में मनुष्य को आनन्द प्राप्ति अधिक से अधिक हो, 
इस का विचार किया गया है। दैनन्दिन जीवन में भी वह तनाव में न रहे, 
अपना कर्म करता रहे और आनन्द में रहे। 
गीता का उपदेश ‘कर्म करते जाओ, फल की चिन्ता मत करो।’ हमें इसी तनाव से मुक्ति की राह दिखाता है।
हमारे भगवान् श्रीराम, एक दिन जिनका राजतिलक होना है परन्तु दूसरे दिन जानकारी मिलती है कि उन्हें तो वन जाना है। वे दोनों ही अवस्थाओं में समान चित्त रहते हैं। यह जो तनाव मुक्ति की भावना है, हर हाल में खुश रहने के भावना है, यही आत्मिक विकास की सीढ़ी है। मनुष्य को देवत्व की ओर ले जाने की भावना है।
आज भौतिक उन्नति के चक्कर में लिप्त समाज में तनाव एक बहुत बड़े रोग की तरह फैल रहा है।
उस तनाव के कारण वह मानसिक दृष्टि से सन्तप्त हैं।
शारीरिक दृष्टि से भी तनाव उनकी कई अन्य बीमारियों को बढ़ा रहा है।
भारतीय संस्कृति में तो तनाव मुक्ति से एक चरण और आगे के लिए सोचा जाता है।
तनाव मुक्ति तो एक सम-स्थिति है इसके आगे सकारात्मक स्थिति है कि आप आनन्दित हों।
प्रतिदिन एक ही प्रकार की दिनचर्या से जीवन में उफब आना स्वाभाविक है। 
अतः व्यक्ति हर समय कुछ नया करने को ललायित रहे, उत्साहित रहे। 
कुछ नया करने के लिए प्रयासरत रहे।

No comments:

Post a Comment