Jun 20, 2018

Hindi Poem जीवन पथ पर हाथ पकड़कर





जीवन पथ पर हाथ पकड़कर

जीवन पथ पर हाथ पकड़कर
अब कौन राह दिखलायेगा।
पितृ छाया का सुकून,
अब कहाँ मिल पायेगा।।

स्वार्थ से भरी तपन में
बेबस दृष्टि उठी गगन में
कहीं किसी ने नहीं संवारा
अब कैसे छाया पायेगा।

टूट गया एक आदर्श सपना,
हमने खोया जनक अपना।
अब बात करें क्या
अपनों को हम समझायें क्या।।

स्वार्थ बढ़ाया बंधुता ने
प्रेम मिटाया स्वजनता ने।
अपना अपना कत्र्तव्य निभाकर
छोड़ दिया सब राह पुराना।।

जीवन पथ पर हाथ पकड़कर
अब कौन राह दिखलायेगा।
पितृ छाया का सुकून,
अब कहाँ मिल पायेगा।।


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