निराशाजनक विचारों से सदैव बचें-वे आपकी
जड़ हिला देगें
हमारा भारतीय समाज जिसकी नींव आध्यात्मिक स्तम्भों पर रखी गयी थी। आज भौतिक सभ्यता के नरक की ओर बढ़ रहा है। यह कितना हास्यास्पद है कि हम अध्यात्म के जनक होकर भी भौतिकता के दलदल में गिरने के लिए बेताब हैं। जिस संस्कृति के लोग मानसिक तनाव को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने देते थे उसी संस्कृति में आज तनाव और निराशा इस हद तक बढ़ते जा रहे हैं कि मानसिक रोगियों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। आज बीमारियों पर नजर डालें तो उसमें ज्यादातर साइको-सोमैटिक बीमारियां हैं । जैसे-तनाव, चिन्ता, उच्च और निम्न रक्तचाप, कैंसर, डायबिटीज, स्पान्डलाइटिस आदि बीमारियां। इनकी जड़ मन ही है।
आज हम भौतिकता के पीछे इस तरह भाग रहे हैं कि हमें अपने विषय में सोचने की फुरसत ही नहीं है। हमें क्या खाना है और क्या नहीं खाना है. इसका हमें ज्ञान होना चाहिए तथा कौन चीज कितनी मात्रा में खानी है-इसका भी हमें ज्ञान होना चाहिए।
अपने शरीर का यदि ढंग से हम रख-रखाव करें तो बीमारियों से बच सकते हैं। कहा जाता है कि हमें दिन में तीन बार ही आहार लेना चाहिए। सुबह का खाना राजा की तरह, दोपहर का वजीर की तरह और रात का फकीर की तरह होना चाहिए।
हमारे आहार की पौष्टिकता तभी बनी रह सकती है जब हरी सब्जियां, फल, अंकुरित अनाज, सलाद तथा दही जैसी चीजों का हमारे भोजन में उपयोग हो।
शरीर के आहार की तरह मन का आहार भी होता है। इसके लिए अपने मन में आशा का दीप सदैव जलाये रखना चाहिए। निराशाजनक विचारों से सदैव बचें-वे आपकी जड़ हिला देगें। यह मनुष्य के अपने वश में है कि वह किस प्रकार का विचार लाता है।
1. आशावादी व्यक्ति अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करता है।
2. वह प्रयत्न भरपूर करता है।
3. असत्य, छल-कपट, हिंसा, निन्दा, चुगली आदि का सहारा नहीं लेता है।
4. वह वर्तमान में जीता है।
5. ऐसा व्यक्ति यदि कभी अपने कार्य में असपफलता भी पाता है तो उसे निराशा नहीं होती है।
6. वह उस कारण पर विचार करता है जिससे उसे असपफलता मिली और उस कारण का निवारण कर आगे बढ़ जाता है।
7. वे लोग जो अपनी असफलता का रोना रोते हैं, वे कायर तथा आलसी होते हैं। वे या तो भूतकाल की दुखद घटनाओं को याद कर आंसू बहाते रहते हैं या फिर मन ही मन भविष्य के स्वप्न के ताने-बाने बुनते रहते हैं।
8. जो बीत गया उसे वापस कभी नहीं लाया जा सकता है। उस विषय में सोचना अपने समय को ही बरबाद करना है।
हमें वर्तमान को भली-भांति जीने की
कला सीखनी चाहिए
क्योंकि वर्तमान ही हमारे वश में होता है। वर्तमान में रहने वाला व्यक्ति मेहनती होता है। जो वर्तमान का उपयोग करता है उसका भूत तो अच्छा होता ही है उसका भविष्य भी अच्छा होता है। क्योंकि वर्तमान से ही भूत और भविष्य जुड़ा होता है।
जड़ हिला देगें
हमारा भारतीय समाज जिसकी नींव आध्यात्मिक स्तम्भों पर रखी गयी थी। आज भौतिक सभ्यता के नरक की ओर बढ़ रहा है। यह कितना हास्यास्पद है कि हम अध्यात्म के जनक होकर भी भौतिकता के दलदल में गिरने के लिए बेताब हैं। जिस संस्कृति के लोग मानसिक तनाव को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने देते थे उसी संस्कृति में आज तनाव और निराशा इस हद तक बढ़ते जा रहे हैं कि मानसिक रोगियों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। आज बीमारियों पर नजर डालें तो उसमें ज्यादातर साइको-सोमैटिक बीमारियां हैं । जैसे-तनाव, चिन्ता, उच्च और निम्न रक्तचाप, कैंसर, डायबिटीज, स्पान्डलाइटिस आदि बीमारियां। इनकी जड़ मन ही है।
आज हम भौतिकता के पीछे इस तरह भाग रहे हैं कि हमें अपने विषय में सोचने की फुरसत ही नहीं है। हमें क्या खाना है और क्या नहीं खाना है. इसका हमें ज्ञान होना चाहिए तथा कौन चीज कितनी मात्रा में खानी है-इसका भी हमें ज्ञान होना चाहिए।
अपने शरीर का यदि ढंग से हम रख-रखाव करें तो बीमारियों से बच सकते हैं। कहा जाता है कि हमें दिन में तीन बार ही आहार लेना चाहिए। सुबह का खाना राजा की तरह, दोपहर का वजीर की तरह और रात का फकीर की तरह होना चाहिए।
हमारे आहार की पौष्टिकता तभी बनी रह सकती है जब हरी सब्जियां, फल, अंकुरित अनाज, सलाद तथा दही जैसी चीजों का हमारे भोजन में उपयोग हो।
शरीर के आहार की तरह मन का आहार भी होता है। इसके लिए अपने मन में आशा का दीप सदैव जलाये रखना चाहिए। निराशाजनक विचारों से सदैव बचें-वे आपकी जड़ हिला देगें। यह मनुष्य के अपने वश में है कि वह किस प्रकार का विचार लाता है।
1. आशावादी व्यक्ति अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करता है।
2. वह प्रयत्न भरपूर करता है।
3. असत्य, छल-कपट, हिंसा, निन्दा, चुगली आदि का सहारा नहीं लेता है।
4. वह वर्तमान में जीता है।
5. ऐसा व्यक्ति यदि कभी अपने कार्य में असपफलता भी पाता है तो उसे निराशा नहीं होती है।
6. वह उस कारण पर विचार करता है जिससे उसे असपफलता मिली और उस कारण का निवारण कर आगे बढ़ जाता है।
7. वे लोग जो अपनी असफलता का रोना रोते हैं, वे कायर तथा आलसी होते हैं। वे या तो भूतकाल की दुखद घटनाओं को याद कर आंसू बहाते रहते हैं या फिर मन ही मन भविष्य के स्वप्न के ताने-बाने बुनते रहते हैं।
8. जो बीत गया उसे वापस कभी नहीं लाया जा सकता है। उस विषय में सोचना अपने समय को ही बरबाद करना है।
हमें वर्तमान को भली-भांति जीने की
कला सीखनी चाहिए
क्योंकि वर्तमान ही हमारे वश में होता है। वर्तमान में रहने वाला व्यक्ति मेहनती होता है। जो वर्तमान का उपयोग करता है उसका भूत तो अच्छा होता ही है उसका भविष्य भी अच्छा होता है। क्योंकि वर्तमान से ही भूत और भविष्य जुड़ा होता है।
No comments:
Post a Comment