रक्षाबंधन पर विशेष
अटूट प्रेम की रूप है बहना
बचपन बीता खेलकूद में
और होती रही लड़ाई
भाई की सबसे बड़ी प्रतियोगी
अपनी बहन ही कहलाई |
लड़ते-झगड़ते पता नहीं कब
हो गयी बहन सयानी
एक हल्की खरोंच भी न आए बहना को
यह बात भाई के मन में समायी |
हर चीज में हिस्सा लेने का, हर बात में झगड़ा करने का
बात-बात में रूठने का , अब हो गयी बात पुरानी
अब अपना हिस्सा भी भाई के लिए रखने की
फिक्र बहना को पता नहीं क्यों समायी
राखी बाँधना हो या फिर हो कोई उत्सव का नेग
बदले में अब कुछ मांगती नहीं
कुछ दो तो हल्की सी बिखेरती है मुस्कान
कुछ न दो तो भी आँखों में अपनेपन का मान
ईश्वर के आगे बैठ कर अपने से ज्यादा
अपने भाई की खुशी की दुआ माँगती है बहना,
ससुराल जाकर भी भाई की प्रतीक्षा में
आंखें बिछाये रहती है बहना |
साल दर साल बीत जाता
अटूट प्रेम बहनों में बना रहता
अपनेपन का यह डोर सदियों पुराना है
आज भी भाई-बहन को देखो, लगता वही जमाना है |
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