प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में सफलता के शिखर पर पहुंचने का स्वप्न देखता है परन्तु सफलता पाना इतना सरल नहीं है और यह भी सच है कि सफलता मिलना असंभव भी नहीं है।
सफलता त्याग और कठोर परिश्रम चाहती है। बिना कठोर परिश्रम किए सफलता न तो किसी को मिली है और न ही मिलेगी। सफलता के शिखर पर यदि पहुंचने की उत्कट लालसा है तो ‘आराम हराम है’ का दृढ़ता के साथ पालन कीजिए।
दिन रात अपने लक्ष्य के विषय में ही सोचें और लक्ष्य को पाने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील रहें और आत्मविश्वास रखें कि सफलता अवश्य मिलेगी।
ऐसा कहते हैं कि जब तक परिश्रम से थककर मनुष्य चूर नहीं हो जाता, उसे धन सम्पत्ति व सफलता प्राप्त नहीं होती। जो आलस्यवश खाली बैठे समय बर्बाद करते रहते हैं, उन्हें पाप दबा लेता है। अतः क्रियाशील रहकर परिश्रम करते हुए, अपने लक्ष्य को प्राप्त करना चाहिए।
परिश्रम से जी चुराना ही आलस्य है और आलस्य ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। आलस्य ही सफलता प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा है।
बिना कठोर श्रम के कोई उन्नति नहीं कर सकता -सफोक्लीज
परिश्रम करने वालों ने दुर्भाग्य पर भी विजय प्राप्त की है -शुक्राचार्य
सर्वश्रेष्ठ वह व्यक्ति है जो प्रगति के लिए सर्वश्रेष्ठ परिश्रम करता है -सुकरात
उद्योगी परिश्रमी व्यक्ति के पास निर्धनता नहीं रहती। वह अपने परिश्रम के बल पर धनोपार्जन में सफलता प्राप्त कर लेता है -चाणक्य
विद्वानों की यही शिक्षा है कि निरंतर पुरुषार्थ परिश्रम करें और संकल्प लेकर सतत रूप से आगे बढ़ते रहें। आत्मविश्वास रखं कि सफलता अवश्य मिलेगी।
व्यवसायी, वैज्ञानिक, लेखक, राजनेता, चित्रकार अथवा शासकीय/निजी क्षेत्र में कार्य करने वाला व्यक्ति कठोर परिश्रम के बल पर ही उन्नति के शिखर पर पहुंचता है।
विश्व में जितने भी महान् विजेता महान शासक, महान् साहित्यकार, महान् कलाकार, महान समाज-सुधारक आदि हुए, उन सबकी उपलब्धि के पीछे एक गुण में समानता थी और वह गुण था अथक परिश्रम का।
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