Apr 18, 2017

सौंदर्य के पुजारी - saundarye ke pujari

सौन्दर्य के पुजारी
उज्जयिनी नगरी के सम्राट महाराज विक्रमादित्य तथा रघुवंश, मेघदूत, अभिज्ञानशाकुन्तलम् संस्कृत ग्रंथों के रचयिता कवि कालिदास में प्रजा हितैषी चर्चाएं चल रही थीं। गर्मी की प्रचण्डता होने से बार-बार प्यास अनुभव हो रही थी। पास में रखी मिट्टी की दो सुराहियों से वे शीतल जल पी अपनी प्यास बुझा रहे थे। सेवक पंखा झल रहा था।
पंखे के पवन एवं शीतल जल पान से भी गर्मी से राहत नहीं मिल रही थी। अत्यधिक उष्णता से दोनों के चेहरे पर पसीने की बूंदें उभर आयीं। महाराजा के गौर वर्ण चेहरे पर बूँदें उनके सौन्दर्य में चार चांद लगा रही थीं लेकिन कालिदास के श्याम वर्ण चेहरे को इन बूँदों ने विकृत कर दिया था।
मनोविनोद का अच्छा अवसर देख महाराज ने कालिदास से विनोदपूर्वक कहा, ‘कालिदास आपको परमात्मा ने विलक्षण प्रतिभा एवं विद्वत्ता प्रदान की है लेकिन कुरुप बना दिया। यदि परमात्मा इस विद्वत्ता के साथ-साथ सुन्दर स्वरूप प्रदान करता तो कितना अच्छा रहता?’
महाराज की विनोद भरी चुटकी सुन कालिदास बोले,‘श्रीमन् मैं इसका उत्तर कल दरबार में दूंगा।’
कालिदास दरबार से सीध्े सुनार के यहां पहुंचे। उससे मिट्टी की सुराही के आकार की सोने की सुन्दर नक्काशीदार सुराही बनवायी। दूसरे दिन दरबार लगने से पूर्व कालिदास ने उस स्वर्ण सुराही को  कपड़े से ढक कर मिट्टी की सुराही हटाते हुए उसके स्थान पर सजा कर रख दिया।
दरबार लगा। गर्मीं बेहद अधिक थी। सेवक ने जल प्रस्तुत किया। जल होठों सेे लगते ही सम्राट बरस पड़े,‘क्या सुराही में गर्म पानी भरा है?’ सम्राट की वाणी सुन सेवक भयभीत हो कांप उठा।
तत्काल कालिदास ने आसन से उठकर सुराही पर ढका कपड़ा हटाया। कपड़ा हटते ही नक्काशी की हुई सुन्दर स्वर्ण सुराही देख सब उसकी प्रशंसा करने लगे। एक बोला,‘स्वर्ण सुराही कितनी सुन्दर है।’ दूसरा कहने लगा,‘इस पर कितनी सुन्दर नक्काशी की गई है।’ तीसरे ने कहा, ‘इसे बनाने वाला सुनार बड़ा कुशल शिल्पी लगता है।’ सम्राट् उबल पड़े, ‘पानी क्या सोने की सुराही में रखा जाता है? यह स्वर्ण सुराही यहां किस मूर्ख ने रखी है?’
कालिदास उठकर विनम्र स्वर में बोले.......‘महाराज, वह मूर्ख मैं हूँ।’
महाराज आश्चर्य से ‘कालिदास आप?’
कालिदास, ‘जी महाराज, आप सौन्दर्य के पुजारी हैं। मिट्टी की सुराही काली, भौंडी व बेहद बदसूरत थी। मैंने सोचा यह भौंडी, बदसूरत सुराही महाराज के लिए यहां किस मूर्ख ने रखी है। मैंने उसे हटाकर सुन्दर, नक्काशीदार स्वर्ण सुराही रख दी। क्या अच्छी नहीं है, महाराज?’
महाराज विक्रमादित्य कालिदास का व्यंग्य समझ गये। उन्हें उनके विनोद का उत्तर मिल गया। सभासद इस रहस्य को नहीं समझ पाये। महाराजा ने मुस्कराते हुए समझाया, ‘सुन्दर रूप नहीं, गुण महान् होते हैं।

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