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आप दिन में कितनी बार हंसते हैं?
यदि व्यक्ति का मन किसी काम में नहीं लगता, कुछ भी अच्छा नहीं लगता और भविष्य की आशा की किरण कुछ भी दिखाई नहीं देती, हंसी की जगह उदासी ने घेर रखा है, प्रिय व्यक्ति से मिलने की इच्छा न हो, तो समझ लेना चाहिए बेहद निराशा, हताशा एवं उदासीनता रूपी मानसिक व्याधियों ने घेर लिया है। अगर आप स्वयं में भी ये लक्षण देखते हैं तो सावधान हो जाएं।
आज व्यक्ति उदासी की व्याधि से ग्रस्त है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण बताता है कि उदासी, निराशा एवं हताशा से व्यक्ति की उम्र घटती है। निराशा व उदासी व्यक्ति में मानसिक अशक्तता उत्पन्न कर देती है। उदास रहने से व्यक्ति का मन कार्य में नहीं लगता है। वह स्वयं को एकाकी महसूस कर नीरसता से घिर जाता है। उसका संबंध् उत्साह व प्रसन्नता से बिल्कुल टूट जाता है। धीरे-धीरे अवसाद ; डिप्रेशन जैसी बीमारी की तरफ बढ़ने लगता है।
युवाओं एवं बुजुर्गों में उदासी अधिक मात्रा में पाई जाती है। युवाओं को रोजगार व कैरियर, घर चलाने की चिंता, प्रेम में असफलता आदि बुरी तरह निराश कर देते हैं। नतीजा- धीरे-धीरे अनेक बीमारियां आकर अपना स्थान जमा लेती हैं जिनमें मुख्यतः ब्लड प्रेशर, अनिद्रा, हृदय रोग व मधुमेह मुख्य हैं।
मनुष्य व्यस्त व गंभीर रहकर धन तो प्राप्त कर लेता है किन्तु इस चक्कर में प्रसन्नता से वंचित होता जाता है। और जवानी से बुढ़ापे में पैर रखते रखते हंसी-प्रसन्नता को छोड़ चुका होता है, जबकि मनुष्य का स्वभाव है आनंदित और प्रसन्न रहना।
प्रसन्नता या हास्य स्वयं में रोग से मुक्त करने की संजीवनी है। गंभीर से गंभीर रोग पर नियंत्रण पाने के लिए हास्य व प्रसन्नता बहुत जरूरी है। आप दिन में कितनी बार हंसते हैं? उदासी, तनाव, अवसाद ;डिप्रेशन जैसी मानसिक रोगों की एकमात्र औषधि है हास्य, प्रसन्नता जो हर व्यक्ति को स्वस्थ व स्वाभाविक जीवन प्रदान कर सकती है।
अतः हमें किसी भी हालत में प्रसन्न रहना ही चाहिए-सुखद व स्वस्थ भविष्य के लिए।
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मनुष्य हर हालत में खुश रह सकता है
राजा क्वांग ने अपने राज्य का प्रधानमंत्री सुन-शू-आओ को तीन बार बनाया, तीन बार निकाला फिर भी उनके चेहरे पर न परेशानी आर्यी न उदासी। वे शान्तचित्त से अपने काम में लगे रहे।
वहाँ के एक विद्वान, जिनका नाम ‘की-बू’ था उन्होंने उनसे इस अपरिवर्तन शीलता का कारण पूछा।
शू-आओ ने कहा-इसमें मेरा क्या बना और क्या बिगड़ा जो मैं उत्तेजित होता।
जब मुझे मंत्री बनने के लिए कहा गया तो मैंने सोचा अस्वीकार करना ठीक नहीं।
जब वह पद छिना तो मैंने सोचा, जहां जरूरत नहीं वहां चिपके रहना बेकार है।
मंत्री पद ने मेरा कुछ बनाया नहीं। उसके न रहने से मेरा कुछ बिगड़ा नहीं, मैं जहां था वहीं मौजूद हूं। फिर वह सम्मान जो मिला मेरा था या कुर्सी का, यदि कुर्सी का था तो मेरा क्या लेना देना?
यदि मेरा सम्मान था तो उसमें कुर्सी के न रहने से क्या अंतर आया?
की-बू को प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो गया था। वे समझ गए कि किस मनःस्थिति का मनुष्य हर हालत में खुश रह सकता है।
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आप दिन में कितनी बार हंसते हैं?
यदि व्यक्ति का मन किसी काम में नहीं लगता, कुछ भी अच्छा नहीं लगता और भविष्य की आशा की किरण कुछ भी दिखाई नहीं देती, हंसी की जगह उदासी ने घेर रखा है, प्रिय व्यक्ति से मिलने की इच्छा न हो, तो समझ लेना चाहिए बेहद निराशा, हताशा एवं उदासीनता रूपी मानसिक व्याधियों ने घेर लिया है। अगर आप स्वयं में भी ये लक्षण देखते हैं तो सावधान हो जाएं।
आज व्यक्ति उदासी की व्याधि से ग्रस्त है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण बताता है कि उदासी, निराशा एवं हताशा से व्यक्ति की उम्र घटती है। निराशा व उदासी व्यक्ति में मानसिक अशक्तता उत्पन्न कर देती है। उदास रहने से व्यक्ति का मन कार्य में नहीं लगता है। वह स्वयं को एकाकी महसूस कर नीरसता से घिर जाता है। उसका संबंध् उत्साह व प्रसन्नता से बिल्कुल टूट जाता है। धीरे-धीरे अवसाद ; डिप्रेशन जैसी बीमारी की तरफ बढ़ने लगता है।
युवाओं एवं बुजुर्गों में उदासी अधिक मात्रा में पाई जाती है। युवाओं को रोजगार व कैरियर, घर चलाने की चिंता, प्रेम में असफलता आदि बुरी तरह निराश कर देते हैं। नतीजा- धीरे-धीरे अनेक बीमारियां आकर अपना स्थान जमा लेती हैं जिनमें मुख्यतः ब्लड प्रेशर, अनिद्रा, हृदय रोग व मधुमेह मुख्य हैं।
मनुष्य व्यस्त व गंभीर रहकर धन तो प्राप्त कर लेता है किन्तु इस चक्कर में प्रसन्नता से वंचित होता जाता है। और जवानी से बुढ़ापे में पैर रखते रखते हंसी-प्रसन्नता को छोड़ चुका होता है, जबकि मनुष्य का स्वभाव है आनंदित और प्रसन्न रहना।
प्रसन्नता या हास्य स्वयं में रोग से मुक्त करने की संजीवनी है। गंभीर से गंभीर रोग पर नियंत्रण पाने के लिए हास्य व प्रसन्नता बहुत जरूरी है। आप दिन में कितनी बार हंसते हैं? उदासी, तनाव, अवसाद ;डिप्रेशन जैसी मानसिक रोगों की एकमात्र औषधि है हास्य, प्रसन्नता जो हर व्यक्ति को स्वस्थ व स्वाभाविक जीवन प्रदान कर सकती है।
अतः हमें किसी भी हालत में प्रसन्न रहना ही चाहिए-सुखद व स्वस्थ भविष्य के लिए।
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मनुष्य हर हालत में खुश रह सकता है
राजा क्वांग ने अपने राज्य का प्रधानमंत्री सुन-शू-आओ को तीन बार बनाया, तीन बार निकाला फिर भी उनके चेहरे पर न परेशानी आर्यी न उदासी। वे शान्तचित्त से अपने काम में लगे रहे।
वहाँ के एक विद्वान, जिनका नाम ‘की-बू’ था उन्होंने उनसे इस अपरिवर्तन शीलता का कारण पूछा।
शू-आओ ने कहा-इसमें मेरा क्या बना और क्या बिगड़ा जो मैं उत्तेजित होता।
जब मुझे मंत्री बनने के लिए कहा गया तो मैंने सोचा अस्वीकार करना ठीक नहीं।
जब वह पद छिना तो मैंने सोचा, जहां जरूरत नहीं वहां चिपके रहना बेकार है।
मंत्री पद ने मेरा कुछ बनाया नहीं। उसके न रहने से मेरा कुछ बिगड़ा नहीं, मैं जहां था वहीं मौजूद हूं। फिर वह सम्मान जो मिला मेरा था या कुर्सी का, यदि कुर्सी का था तो मेरा क्या लेना देना?
यदि मेरा सम्मान था तो उसमें कुर्सी के न रहने से क्या अंतर आया?
की-बू को प्रश्न का उत्तर प्राप्त हो गया था। वे समझ गए कि किस मनःस्थिति का मनुष्य हर हालत में खुश रह सकता है।
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