चिन्ता ने हमारे दिल, दिमाग और पेट को अपना निशाना बनाया है
चिन्ता सेे सारे काम बिगड़ जाते हैं, स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है, हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, डायबिटीज जैसे रोग हो जाते हैं, दृष्टि धुंधली पड़ जाती है, अपच हर समय रहता है और शरीर में खून की कमी हो जाती है। आदमी का अपना व्यक्तित्व समाप्त हो जाता है। सदा घबराहट रहती है।
चिन्ता सारी बीमारियों की जड़ है। आज चिन्ता रुपी महामारी फैली है। अस्पताल में, क्लीनिकों में ऐसे लोगों की बहुतायत है, जिन्हें चिन्ता या असुरक्षा की भावना सता रही है। चिन्ता ने हमारे दिल, दिमाग और पेट को भी अपना निशाना बनाया है तथा कोशिकाओं, उतकों और अंगों पर उसका व्यापक असर देखा जा सकता है।
चिन्ता को कोई जन्म से लेकर नहीं आता। इसे हम स्वयं उत्पन्न करते हैं। और अगर इसे नष्ट करना हो तो उसका सही समय सिर्फ एक ही है और वह है अभी, इसी समय।
हमें सोचना चाहिए कि चिता उसे जलाती है जिसके शरीर से प्राण बाहर जा चुका है। जबकि चिन्ता प्राणयुक्त को, सजीव को भस्म करती है, जिसमें जीवन है, जिसमें आशा है।
अतः चिता और चिन्ता में चिन्ता ही बढ़कर है।
चिन्ता का संबंध् चिन्तन की उस पद्धति से है जिसे नकारात्मक कहा जाता है। सकारात्मक सोच वालों को चिन्ता नहीं डंसती। अर्थात जैसा चिन्तन होता है, आदमी भी वैसा ही बन जाता है। हमारी जिन्दगी हमारे हाथ में है। हम चाहें तो चिन्ता करके इस जीवन को नरक में बदल सकते हैं और हमारी इच्छा सकारात्मक हो तो यह जीवन स्वर्ग में परिणत हो सकता है।
चिन्ता दूर करने का एक स्वर्णिम सूत्र यह है कि जो छूट गया, उसे भूल जाओ। समस्याओं का राग अलापना ठीक नहीं।
समृद्धि और सफलता का विचार ही समृद्धि और सफलता देता है। जो सदैव निराशा और असफलता का विचार करता हैं उनका कोई काम नहीं होता।
हमारा आचरण और विचार सकारात्मक होना आवश्यक है। हम काल्पनिक आशंकाओं के संसार से बाहर आएं। विश्वास रखें कि अब और अच्छा होने वाला है। बुरे का विचार मन में रखना ही चिन्ता को निमंत्रण देना है। यदि अच्छा पाना है तो अच्छा ही सोचना होगा क्योंकि हम जैसा सोचते हैं वैसे ही हो जाते हैं।
उन लोगों का संग नहीं करना चाहिये जो नकारात्मक बातें कहते और करते हैं। चिन्ता से बीमार अधिकांश मरीजों में कोई शारीरिक गड़बड़ी नहीं होती। उनके सिर्फ विचार गड़बड़ होते हैं। विचारों की गड़बड़ी दूर करने के लिए आस्था, विश्वास अमृत का कार्य करती है। वह चिन्ता को दूर भगाती है, व्यक्तित्व का परिमार्जित करती है, कुण्ठाओं को दूर करती है और निराशा के भावों से पीछा छुड़ाती है। अगर हममें विश्वास है तो कोई भी सिद्धि और सफलता हमसे दूर नहीं।
चिन्ता सेे सारे काम बिगड़ जाते हैं, स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है, हृदय की धड़कन बढ़ जाती है, डायबिटीज जैसे रोग हो जाते हैं, दृष्टि धुंधली पड़ जाती है, अपच हर समय रहता है और शरीर में खून की कमी हो जाती है। आदमी का अपना व्यक्तित्व समाप्त हो जाता है। सदा घबराहट रहती है।
चिन्ता सारी बीमारियों की जड़ है। आज चिन्ता रुपी महामारी फैली है। अस्पताल में, क्लीनिकों में ऐसे लोगों की बहुतायत है, जिन्हें चिन्ता या असुरक्षा की भावना सता रही है। चिन्ता ने हमारे दिल, दिमाग और पेट को भी अपना निशाना बनाया है तथा कोशिकाओं, उतकों और अंगों पर उसका व्यापक असर देखा जा सकता है।
चिन्ता को कोई जन्म से लेकर नहीं आता। इसे हम स्वयं उत्पन्न करते हैं। और अगर इसे नष्ट करना हो तो उसका सही समय सिर्फ एक ही है और वह है अभी, इसी समय।
हमें सोचना चाहिए कि चिता उसे जलाती है जिसके शरीर से प्राण बाहर जा चुका है। जबकि चिन्ता प्राणयुक्त को, सजीव को भस्म करती है, जिसमें जीवन है, जिसमें आशा है।
अतः चिता और चिन्ता में चिन्ता ही बढ़कर है।
चिन्ता का संबंध् चिन्तन की उस पद्धति से है जिसे नकारात्मक कहा जाता है। सकारात्मक सोच वालों को चिन्ता नहीं डंसती। अर्थात जैसा चिन्तन होता है, आदमी भी वैसा ही बन जाता है। हमारी जिन्दगी हमारे हाथ में है। हम चाहें तो चिन्ता करके इस जीवन को नरक में बदल सकते हैं और हमारी इच्छा सकारात्मक हो तो यह जीवन स्वर्ग में परिणत हो सकता है।
चिन्ता दूर करने का एक स्वर्णिम सूत्र यह है कि जो छूट गया, उसे भूल जाओ। समस्याओं का राग अलापना ठीक नहीं।
समृद्धि और सफलता का विचार ही समृद्धि और सफलता देता है। जो सदैव निराशा और असफलता का विचार करता हैं उनका कोई काम नहीं होता।
हमारा आचरण और विचार सकारात्मक होना आवश्यक है। हम काल्पनिक आशंकाओं के संसार से बाहर आएं। विश्वास रखें कि अब और अच्छा होने वाला है। बुरे का विचार मन में रखना ही चिन्ता को निमंत्रण देना है। यदि अच्छा पाना है तो अच्छा ही सोचना होगा क्योंकि हम जैसा सोचते हैं वैसे ही हो जाते हैं।
उन लोगों का संग नहीं करना चाहिये जो नकारात्मक बातें कहते और करते हैं। चिन्ता से बीमार अधिकांश मरीजों में कोई शारीरिक गड़बड़ी नहीं होती। उनके सिर्फ विचार गड़बड़ होते हैं। विचारों की गड़बड़ी दूर करने के लिए आस्था, विश्वास अमृत का कार्य करती है। वह चिन्ता को दूर भगाती है, व्यक्तित्व का परिमार्जित करती है, कुण्ठाओं को दूर करती है और निराशा के भावों से पीछा छुड़ाती है। अगर हममें विश्वास है तो कोई भी सिद्धि और सफलता हमसे दूर नहीं।
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