मित्र, तुम मेरे अपने हो
बचपन से मेरे संग हो
तुमने मुझे पहचाना है
मैंने भी तुझे जाना है
अचानक संग साथ छोड़ गए क्यों ?
पल में पराया हो गए क्यों ?
अभी तो तुमसे बातें हुई थी
ज्ञान की कुछ बात बताई थी
मानव हित के कार्य तुमने संजोया था
उसे पूरा करने का भार उठाया था
सब रह गया बातों में ही पड़ा हुआ
मन की सोच और सपनों में गड़ा हुआ
अब कौन उसे पूरा कर पायेगा
जन-जन तक उसे कौन पहुँचायेगा
बड़ी आशा थी, मानवता के प्राण बनोगे
विश्व-मानसी बनकर विश्व हित के कार्य करोगे
टूटी आशा हुई निराशा, जग से पंछी उड़ जायेगा
विजय की माला, याद बन कर हृदय में रह जायेगा ।
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