Motivational Poem
तुम कर क्या रहे हो ?
Tum kar kya rahey ho?
आकाश की ऊंचाईयों को
सागर की गहराईयों को
तुम माप सकते हो, संदेह जरा भी नहीं |
चढ़ सकते हो
दुर्गम पहाड़ और पर्वत पर
उतर सकते हो
मरुस्थल और घाटियों की गहराईयों में
तुम यह भी कर सकते हो, संदेह जरा भी नहीं ||
संचित कर सकते हो
धन का अम्बार
प्राप्त हो सकती है
भौतिकता के सुख संसार
इसमें भी संदेह जरा भी नहीं |
धरती की हर सुख-सुविधा को
तुम कर सकते हो प्राप्त
इसमें भी संदेह जरा भी नहीं ||
अब यह बताओ तुम
जब सब कुछ कर सकते हो, तो...............
तुम करते क्यों नहीं?
तुम कर क्या रहे हो?
केवल कल्पना...................
अपने इन्हीं कल्पना को मूर्त रूप दे दो
और उस रूप को विचार में बदल दो
यही विचार सृजन है |
अब तक इस विश्व में
अरबों मनुष्य आया और मिट गया,
शेष केवल रह गया उसका विचार,
विचार सदा जीवित रहता है,
इस संसार में विचार ही अमर है ||
No comments:
Post a Comment