Motivational Poem
कहाँ भूल हुई
Kahan bhool hui
शिखर तक पहुंचने का लक्ष्य बना कर भी
शिखर से बहुत पीछे रह जाने का दर्द
दुःखी करता रहता है जीवन भर
सफलता की सीढ़ियां चढ़ कर बहुत दूर
निकल जाने की सोच
परंतु सोच पूरा न होने का दर्द
चुभता रहता है जीवन भर
कड़ी मेहनत और हर चुनौती स्वीकार करके भी
जीवन में असफल रह जाने का दर्द
कचोटता रहता है जीवन भर
मुट्ठी से फिसलते रेत की तरह
समय निकलता रहा
दिन, महीने, साल बीतता रहा
सभी से अपमान और तिरस्कार मिलता रहा
कहाँ भूल हुई, कहाँ चूक हुई
जीवन क्यों निराश करता रहा
साथ वाले सभी आगे निकलते गए
अपना लक्ष्य, अपनी सोच और कड़ी मेहनत
क्यों निरर्थक रहा ?
दुनियां के करोड़ो-करोड़ असफल लोगों का
यही सबसे बड़ा सवाल है
हमने सब-कुछ करके भी कुछ नहीं पाया
आखिर यह कैसा इंसाफ है ?
" सबसे बड़ा सवाल " और " यह कैसा इंसाफ " को छोड़ो
ताकत अपनी देखो
उम्र के साठ, सत्तर और अस्सी वर्ष में भी
जाने कितने लोग सफल हुए हैं
बहुत तो महापुरुष भी बने हैं
जानना है तो " गूगल पर सर्च " कर लो
या पुस्तकों में खोज लो
और अपने को फिर से सजग कर लो
क्या तुम इस उम्र को पार कर गए हो ?
अगर नहीं तो बात बिगड़ी कहाँ है
एक बार जोर लगा दो
अपमानित और तिरस्कार करने वाले को
राह दिखा दो
तुम्हारी सफलता से सफल होगा, विकसित होगा
यह धरती, यह देश, तुम्हारा समाज
तुम्हारा परिवार और
स्वयं तुम ॥
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