मैं फिर से खिल उठूंगा,
मेरा साहस तो नहीं ले गये
मुट्टी भर आस जगी थी,
सारा विश्वास ही ले गये।
किया भरोसा जहाँ पर,
वह आकाश ही ले गये।
रोजी, रोटी और स्वास्थ,
सभी छिन कर ले गये।
पर तुमने अभी देखा कहाँ है,
मेरी हिम्मत तो नहीं ले गये।
फिर से गले लगेंगे,
मेरा मधुमास तो नहीं ले गये।
तीज-त्यौहार मनेंगे,
उल्लास तो नहीं ले गये।
मैं फिर से खिल उठूंगा,
मेरा साहस तो नहीं ले गये।
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