अद्वितीय भारत
पर्वतराज हिमालय की गोद में है पंचकेदार
पंचकेदार की कथा इस प्रकार कही जाती है-महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना जरूरी था। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार जा पहुंचेे। इधर पांडव उनका पता करते-करते केदार पहुंच गए। भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अतः भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम शंकर जी रूपी बैल को पकड़ना चाहे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगेे। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति और दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने उन्हें दर्शन देकर पाप मुक्त कर दिया। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतध्र्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। जहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है।
शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए तथा पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं।
इसलिए इन्हें पंचकेदार कहा जाता है।
केदारनाथ मंदिर
पर्वतराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर और मंदाकिनी नदी के समीप प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर अवस्थित हैं। कहा जाता है कि यह मंदिर पांडवों ने बनवाया था, लेकिन बर्फ के थपेड़ों की मार के चलते यह लुप्त हो गया था। बाद में 8 वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने मंदिर का निर्माण कराया, जो 400 वर्ष तक बर्फ में दबा रहा। मन्दिर का निर्माण किसने कराया, इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि एक हजार वर्षों से केदारनाथ पर तीर्थयात्रा जारी है।
यहां हिमालय का बड़ा भव्य रूप देखा जा सकता है। इलाके में प्रवेश करने पर मनोमुग्धकारी प्राकृतिक सौन्दर्य के दर्शन होते हैं। ऐसा चित्ताकर्षक दृश्य भाग्य से ही मिल पाता है। आपको अनुभव होने लगेगा कि आप किसी अनुपम लोक में विचरण के लिए जा रहे हैं। हिमाच्छादित शैल शिखरों की दृश्यावलियां, दर्पण की भांति दमकती हुई जलपूर्ण झीलें और चट्टानों के मध्य टेढ़े-मेढ़े मार्ग बनाकर बहती हुई तेज जल- धाराएं भला किस पर्यटक का मन मुग्ध नहीं करेंगी। केदारनाथ पहुँचने के लिए रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी होकर आगे गौरीकुंड तक मोटरमार्ग से और फिर आगे की यात्रा, समतल व तीव्र ढाल से होकर गुजरने वाले पैदल मार्ग द्वारा करनी पड़ती है।
यहां हिमालय की चोटियों का मनभावना दृश्य दिखाई देता है। केदारनाथ मंदिर के एक तरफ करीब 22000 फुट ऊंचा केदारनाथ की चोटी, दूसरी तरफ 21600 फुट ऊंचा खर्चकुंड की चोटी और तीसरी तरफ 22700 फुट ऊंचा भरतकुंड की चोटी है। यह मन्दिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है। यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है। ये शिलाखंड भूरे रंग के है। यह आश्चर्य ही है कि इतने भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर, उसे तराश कर कैसे मंदिर का रूप दिया गया होगा। विशेषकर इसकी विशालकाय छत जो एक ही पत्थर की है, को कैसे खंभों पर रखा गया होगा। मंदिर के पीछे कई कुण्ड हैं, जिनमें आचमन तथा तर्पण किया जा सकता है। बाहर प्रांगण में नन्दी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत अद्वितीय नमूना है।
हिमालय की पावन भूमि को,
इन मन्दिरों को,
भगवान भोलेनाथ को
शत-शत नमन।
कोरोना विपदा के समाप्त होने पर
इस देवधाम का दर्शन किया जा सकता है।
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