बातें बचपन की नव पचपन की
मन की चंचलता,
कहाँ खो गई, कहाँ लुप्त हुई,
कौन जाने?
सोच रहे, बस मौन खड़े.......बस मौन खड़े।
सूरज की चंचल किरणें
प्रकाश लिए आती है, चली जाती है,
कौन जाने?
सोच रहे, बस मौन खड़े...... बस मौन खड़े।
बातें बचपन की हो या नव पचपन की
आनंद विभोर नहीं कर रही,
कौन जाने?
सोच रहे, बस मौन खड़े ...... बस मौन खड़े।
प्रकृति पल-पल वेश बदल रही
महामारी से मानवता लड़ रही,
होगा इससे मुक्त जीवन, कौन जाने?
सोच रहे, बस मौन खड़े ...... बस मौन खड़े।
असीम साहस जुटा रहे
संयम से प्रकोप को मिटा रहे
मिलेगी अद्वितीय जीत अनुपम
सोच रहे, धैर्य धरे, मौन खड़े ......मौन खड़े।
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Waah
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