Apr 27, 2020

सपने सजाने परदेश में


विश्व विपदा की इस घड़ी में
आयी जन्मभूमि सेे पुकार.......
कैसे हो मेरे लाल !

गांव छोड़ जो शहर गया,
शहर छोड़ महानगर।
महानगर छोड़ जो परदेश गया,
और.......... 
जन्मभूमि में जिन्हें छोड़ गया
उनकी करुण पुकार.......
कैसे हो मेरे लाल !

जन्मदायिनी माँ की आंखें,
हर समय भीगी रहती है।
पिता की आंखों में चिन्ता, 
सदा ही दिखती है।।

पत्नी और बच्चों की आंखें, 
बिछी है तुम्हारी राह में।
तुम जिन्हें छोड़ कर गये, 
सपने सजाने परदेश में।।
उन सबकी है पुकार.......
कैसे हो मेरे लाल !

यह विपदा यह संकट यह महामारी
झेल रहा है हर मानव 
और धरती हमारी। 
हम यहां घर में हैं, 
तुम भी घर में रहना।
इस संकट की घड़ी में, 
धैर्य नहीं खोना।

न हम कहीं जायेंगे, 
न तुम कहीं जाना।
रिश्ते तो जीवन भर के होते हैं, 
जीवन को बचाना।
हर घड़ी हर पल, तुम्हें याद करूंगा
और करता रहूँगा पुकार....
कैसे हो मेरे लाल, कैसे हो मेरे लाल।।

विश्व विपदा की इस घड़ी में
आयी जन्मभूमि सेे पुकार.......
कैसे हो मेरे लाल !

==========================================
============================

No comments:

Post a Comment