शहर शहर सुनसान है, डगर डगर विरान,
धरती के हर ओर, आतंक में हैं प्राण।
महामारी अपना कहर बरसा रही है,
नित दिन मानवों से संपर्क बना रही है।
इसके विरूद्ध चिकित्सकों की,
सहृदयी सेना लड़ रही है।
मानवता के बाकी रक्षक भी,
कड़ी चुनौती दे रही है।
चलो हम सब मिलकर यह प्रण उठायें,
इक्कीस दिन अपने, घरों में बंद हो जायें।
इससे इसकी श्रृंखला टूट जायेगी,
मानवों में बढ़ती कड़ी रूक जायेगी।
हम-सब-आप की, यह धैर्य की घड़ी है,
हम विजयी होंगे, इसमें संदेह नहीं है।
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