चित्र और सेल्फी
मेरा बचपन कितना सुन्दर था,
हर किसी को बताता हूँ ।
बात बात में जवानी के
किस्से भी सुनाता हूँ ।।
शुरू में सुनकर ये बातें,
वाह वाह कर उठते थे लोग।
पर अब तो घर के बच्चे भी,
होने लगे हैं बोर।
फिर भी अपनी ये आदत,
छोड़ नहीं पाता हूँ ।
बात बात में उन दिनों की
बातें ही बताता हूँ ।।
मुझे लगता है यह सुनकर
बच्चे प्रभावित होंगे
अपने बचपन और जवानी में
कुछ रंग इससे भर लेंगे
परन्तु वह मुझे समझाते हैं
देखो जमाना कितना बदल गया है
अब चिट्ठी और टेलीग्राम की जगह
मोबाइल और इंटरनेट आ गया है
कहते हैं, वे दिन अच्छे होंगे
उससे अधिक अच्छे अब आ गये हैं
कल जो आप पुस्तकों में निहारा करते थे
अब इंटरनेट मोबाइल पर छा गये हैं
यह सुन कर सोचा
क्या शब्द और भाषा लुप्त हो रहा है
आधुनिक तकनीक पर
अब चित्रों का खेल चल रहा है
क्या वह दिन भी आयेगा
जब शब्द न होगा, चित्र ही होगा
क्या शब्दों की गूंज और महत्ता
चित्र और सेल्फी ले लेगा?
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