Jan 2, 2018

Motivational Story NavVarsh ka Prarabh-kuch naya karne ki prerna नववर्ष का प्रारंभ - कुछ नया करने की प्रेरणा

Motivational Story
NavVarsh ka Prarabh-kuch naya karne ki prerna



नववर्ष का प्रारंभ 
कुछ नया करने की प्रेरणा

जनवरी मास से अंग्रेजी नववर्ष का प्रारंभ हो गया है। हम अपना कार्य व्यवहार इसी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार करते  हैं। परन्तु अपना एक भारतीय संवतसर भी है। इसके अनुसार अपना नवसंवत 'नववर्ष' इससे अलग है।
अपने संवतसर का प्रयोग हम अपने उत्सव, पर्व-त्यौहार, विवाह आदि के कार्यों में प्रमुखता से करते हैं। परन्तु यह हमारी अपनी दुर्बलता है कि हम अपने बच्चों को अपने संवत, उसके मास की जानकारी तक नहीं दे रहे हैं।
हमारे अनेक किशोरों को यह जानकारी नहीं है कि हमारी अपनी कालगणना की पद्धति क्या है। आज तो अंग्रेजी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों को अपनी भाषा में गिनती तक नहीं आती। उनसठ, उनहत्तर की बात छोड़िए। वह तीस पैंतीस जैसे सामान्य अंक भी अंग्रेजी के अंकों से समझ पाता है। अर्थात वह अपनी संस्कृति व अपनी मातृभाषा से दूर होता जा रहा है। जिसके कारण दैनिक व्यवहार में उसे आगे के जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि सभी लोग अंग्रेजी तो नहीं समझते हैं।
हमारी जीवन प्रणाली, जीवन का लक्ष्य ही हमारे सारे कार्य कलापों को नियंत्रित करता है। उसी से मनुष्य का विकास होता है। हम एक समाज में रहते हैं। इसमें सामाजिक नियम किस प्रकार के हों, यही तो समाज का आधार है। अकेला व्यक्ति विकास तो क्या करेगा जिन्दा भी नहीं रह सकता। हमें अपने जीवन की हर आवश्यकता के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। कोई अन्न पैदा करता है तो कोई कपड़ा बुनता है, तो कोई मकान निर्माण का कार्य करता है। 
हम कालगणना की बात कर रहे थे। हमारी कालगणना वैज्ञानिक दृष्टि से भी श्रेष्ठ है। इस में ‘पल’ के अंश से लेकर ‘घंटे, पहर, दिन, सप्ताह, मास, वर्ष से लेकर युग और कल्प’ तक का विचार किया जाता है। युगों-युगों से पूरे ब्रह्माण्ड के ग्रहों के चलने तक का हिसाब है।
भारतीय कालगणना सूरज और चांद दोनों को आधार मान कर चलती है। सूर्य के अनुसार चलने वाली गणना में वैशाखी सदा 13 अप्रैल तथा मकर संक्राति सदा 14 जनवरी को होती है।
चन्द्र मास की गणना में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दो पक्ष होते हैं। एक पक्ष 15 दिनों का होता है। दोनों पक्ष मिलकर एक महिना होता है। हमारे अधिकांश व्रत, त्यौहार, महापुरुषों के जन्मदिन इसी गणना के अनुसार चलते हैं। इस का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इस की तिथि पूछने के लिए रेडियो, टीवी या अखबार का सहारा नहीं लेना पड़ता। गांव में रहने वाला व्यक्ति भी अमावस्या और पूर्णमासी को आकाश देखकर त्यौहार का पता लगा लेता है। व्रत आदि रखने का विधान भी चन्द्र तिथियों के अनुसार मनाने का एक कारण यह माना गया है कि चन्द्रमा के घटने बढ़ने का समुद्र की भांति शरीर पर भी प्रभाव होता है। अतः व्रत त्यौहार के लिए चन्द्रमास की गणना को महत्व दिया गया।
चन्द्रमास और सूर्य मास के अन्तर का सामंजस्य बैठाने के लिए चार वर्ष में एक अधिक मास का विधान कर दिया गया जिससे त्यौहारों में कुछ दिनों का अंतर पड़ता है।
कालगणना का जीवन के साथ एक गहरा संबंध होता है। जैसे प्रतिदिन सूर्य के उदय के साथ आदमी अपने दिन भर के कार्य की योजना बनाता है। सप्ताह, मास और वर्ष की गणना उसे अपने कार्य का लेखा जोखा करने तथा आगे की योजना बनाने में सहायक होती है। इस प्रकार कालगणना जीवन में अपनी आकांक्षाएं और सपने पूरे करने का एक माध्यम है।




इसके अतिरिक्त अपनी कालगणना से हम अपने अतीत की स्मृतियां से जुड़ते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं। हमारे इतिहास के सभी महापुरुषों के जन्म दिन, त्यौहार हमारे संवतसर के साथ जुड़े हैं। रामनवमी, शिवरात्रि, जन्माष्टमी हमें अपने महापुरुषों के साथ जोड़ती है। होली, रक्षाबंधन, दीपावली, दशहरा हमें संस्कार और प्रेरणा देते हैं। अतः हमें अपने वैज्ञानिक संवतसर का उपयोग अधिक से अधिक करते रहना चाहिए।
हमारे संवतसर की एक विशेषता है कि वह प्रकृति के अधिक निकट है। हमारा नया वर्ष प्रारंभ होता है तो प्रकृति में बहार आई होती है। इस बार हमारा नवसंवत अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 18 मार्च 2018 को है। प्रकृति के इस उत्साह का प्रभाव मानव शरीर पर भी पड़ता है। उसमें उमंग और आनन्द तथा कुछ नया करने की प्रेरणा होती है।
हम अंग्रेजी नववर्ष को व्यवहार में लाते हैं, परन्तु हमारे मन में यह भाव भी बना रहना चाहिए कि हमारा अपना एक श्रेष्ठ संवतसर है, जो वैज्ञानिक भी है और हमारी संस्कृति का आधार भी है।

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