Aug 17, 2017

Motivational Poem बस दीप-शिखा सी बन


 बस दीप-शिखा सी बन

यह मेरा है, यह तेरा है,
ये मेरी जिंदगी है, यह तेरी जिंदगी है
धरती से आकाश तक फैला
ये विचार है।

धरती से आकाश तक छाया है,
स्वच्छंद और स्वतंत्र रूप में।
वहां तक जहां धरती और आकाश का
मिलन होता है।

उस क्षितिज तक
जहां जमीन और आसमां
मिलते नजर आते हैं
पर मिलते कहीं भी नहीं।

धरती आकाश तक
उठ नहीं सकती।
और आसमां धरती तक
झुक नहीं सकता।

विचार की स्वच्छंदता कटी पतंग के समान,
जो अपना अस्तित्व खो कर
समझ पाती है कि असीम गगन के तले
कितनी असुरक्षित है।

सामाजिक उठा-पटक,
तेज रफ्तार हवाओं के झोंके
जमीन पर गिर कर पंजों में दबकर
उसे जीर्ण-शीर्ण कर देते हैं।

तब वह समझ पाती है कि
जिन्दगी किस चीज का नाम है।
पतंग का मूल्य जब तक डोर से बंधी है।
जमीन पर नोच-खरोंच दी जाती है।

विषमतायें और समस्यायें
धरती पर यत्रा तत्र सर्वत्रमिल जायेंगी।
बस दीप-शिखा सी बन,
रौशनी फैला कर मार्गदर्शक बन।।

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