हे महाबाहो !
निःसंदेह मन बड़ा चंचल है,
यह रुक नहीं सकता। परन्तु
हे कौन्तेय! अभ्यास और वैराग्य से
यह वश में किया जा सकता है।
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निरर्थक कलह करना मूर्खो का काम है,
बुद्धिमान को इसका त्याग करना चाहिए।
ऐसा करने से उसे यश मिलता है और अनर्थ
का सामना नहीं करना पड़ता ।
-विदुर
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