प्रेम की खूशबू
अन्तस से क्यों आ रही है,
किसी को पाने की आस।
सतरंगी सपने भरे आकाश में,
किसी के होने का अहसास।।
सिंदूरी सांझ का आंचल,
सरक रहा था तन पर।
समेटे प्रेम का चितवन,
छा रहा था मन पर।।
प्रेम की खूशबू पाकर
अब इतराने लगा था मन।
सागर की बलखाती लहरों सी
लहराने लगा अद्वितीय यौवन।।
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