‘सारी शक्तियां आपके भीतर हैं,
आप सब कर सकते हैं, इस बात
पर विश्वास करें।’
-विवेकानंद
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स्वामी विवेकानंद अपने शिष्यों के साथ
एक निर्माणाधीन मन्दिर में गये।
वहां उन्होंने मजदूरों से बातचीत की।
प्रश्न सबके लिए एक ही था, ‘क्यों भाई, क्या कर रहे हो?’
एक ने उत्तर दिया,‘देखते नहीं हो क्या? गधे के समान जुटे हैं।
दिन भर काम करने पर थोड़ा-बहुत मिल जाता है।
अब दूसरा बोला, ‘रोजी-रोटी कमाने के लिए कुछ तो करना ही पड़ता है।
आजीविका के लिए यह बोझा ढो रहा हूँ।’
तीसरे मजदूर से पूछने पर उसने उत्तर दिया,
‘यह भगवान् का घर बन रहा है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि
मेरे पसीने की कुछ बूंदें भी इसमें लग रही है ।
जो भी मिलता है, उससे मैं सन्तुष्ट हूँ। भोजन भी मिल जाता है
और प्रभु का काम भी पूर्ण होता जा रहा है।’
इन श्रमिकों से बातचीत के पश्चात् स्वामी जी ने
अपने शिष्यों को से कहा, ‘आपने सुना कि तीनों के काम
करने के ढंग तथा भावों में कितना अन्तर है?
मंदिर निर्माण में तीनों लगे हैं। एक की गधे जैसी विवशता है,
दूसरा यन्त्रवत् काम में लगा है और
तीसरा समर्पण-भाव से काम में जुटा है।
यही अन्तर उनके कार्य की गुणवत्ता में भी दिखाई देगा।
कार्य के साथ उद्देश्य तथा दृष्टिकोण का महत्त्व है,
भावना महत्त्वपूर्ण है।
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