अब प्रश्न जीवन का है यहाँ पर
निर्भर करता वह मानव मन पर।
नियंत्रण मन को ही करना होगा,
बाहर नहीं, घर के अंदर रहना होगा,
इसकी समय सीमा को कौन जानता....
धैर्य भरा संकल्प रखना होगा।।
क्षितिज तक लहरें हैं लगातार,
मानव से मानव तक है विस्तार,
सब के प्राण जुड़े हैं किस प्रकार....
अब दिख रहा है संबंधों का सार।
एकता असीम है, अनेकता अनन्त,
लक्ष्य स्पष्ट है, पथ स्वतंत्र,
अपने अपने जीवन की पूर्ण सुरक्षा....
यही एक मंत्र, समस्या का अंत।।
अब प्रश्न जीवन का है यहाँ पर
निर्भर करता वह मानव मन पर।
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